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राजस्थान के महामहिम राज्यपाल एवं कुलाधिपति महोदय श्री कल्याणसिंहजी की हार्दिक इच्छानुसार एवं उनके मार्गदर्शन में अजमेर के आर्यविद्वानों एवं आर्य समाज से संबंधित संस्थाएं जिनमें परोपकारणी सभा, अजमेर, आर्य समाज अजमेर तथा महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के सम्मिलित प्रयासों से प्रबंध बोर्ड, महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर की 90वीं बैठक दिनांक 29.08.2016 के मद सं. 24 के निर्णय की अनुपालना में, महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में महर्षि दयानन्द शोधपीठ की स्थापना दि. 16.09.2016 को की गई।
समिति: माननीय कुलपति महोदय के आदेशानुसार महर्षि दयानन्द शोधपीठ की गतिविधियों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु निम्नानुसार एक समिति गठित की गई — 1. प्रो. प्रवीण माथुर - निदेशक, महर्षि दयानन्द शोधपीठ 2. डॉ. सोमदेव शास्त्री - महर्षि दयानन्द निर्वाण स्मारक न्यास 3. आचार्य सत्यजित् (मुनि सत्यजित्) - परोपकारिणी सभा/वानप्रस्थ साधक आश्रम, रोजड़ 4. डॉ. दिनेशचन्द्र शर्मा - नगर आर्यसमाज, अजमेर 5. डॉ. मोक्षराज - आर्यसमाज, अजमेर 6. श्री सुभाष नवाल - परोपकारिणी सभा, अजमेर 7. कुलसचिव - महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर 8. वित्त नियन्त्रक - महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर
गतिविधियां: महर्षि दयानन्द शोधपीठ की स्थापना के बाद आर्यविद्वानों एवं आर्य समाज से संबंधित संस्थाओं में शोधपीठ की गतिविधियों बाबत पारस्परिक संवाद हेतु शोध पीठ की प्रथम बैठक विश्वविद्यालय परिसर में माननीय कुलपति महोदय प्रो. भगीरथ सिंह जी की अध्यक्षता में दिनांक 11 अगस्त 2017 को आयोजित की गई जिसमें अजमेर आर्य समाज, परोपकारणी सभा, महर्षि दयानन्द आर्ष गुरुकुल न्यास, राजस्थान संस्कृत अकादमी, ओम भवन, ऋषि उद्यान अजमेर आदि संस्थाओं के प्रतिनिधि बैठक में उपस्थित हुए। बैठक में शोधपीठ की आगामी गतिविधियों को लेकर विस्तृत चर्चा की गई।
महर्षि दयानन्द शोधपीठ द्वारा दि. 30 अक्टूबर, 2017 को 134वें ऋषि निर्वाण समारोह के अवसर पर एक दिवसीय संगोष्ठी महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, अजमेर में आयोजित की गई। जहां श्री शिवशंकर हेड़ा, अध्यक्ष, अजमेर विकास प्राधिकरण ने इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में अपने विचार व्यक्त किए। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. रूप किशोर शास्त्री (पूर्व सचिव, मानव संसाधन विकास, भारत सरकार) एवं कांगडी गुरुकुल के वेद विभागाध्यक्ष ने बताया कि ऋषि का नाम आते ही विधर्मियों, पाखंड़ियों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। महर्षि दयानन्द का अर्थ चिंतन भी कार्ल मार्क्स से कम नहीं था। महर्षि दयानन्द समग्र क्रान्ति के अग्रदूत थे। ऋषि उद्यान के ब्रह्मचारी शिवनारायण, रमण जी व वामदेव ने ईश्वर स्तुतिप्रार्थनोपासना मंत्र पढ़े। संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में आचार्य सत्यजित् (आर्ष गुरुकुल, ऋषि उद्यान), प्रो. लम्बोदर मिश्र, डॉ. रामचन्द्र (कुरुक्षेत्र), डॉ. श्रीगोपाल बाहेती (कार्यकारी प्रधान, महर्षि दयानन्द निर्वाण स्मारक न्यास), डॉ. सोमदेव शास्त्री (अध्यक्ष-वैदिक मिशन, मुम्बई), स्वामी मुक्तानन्द, आचार्य कर्मवीर, श्री सत्यव्रत, वॉशिंगटन में नियुक्त संस्कृति दूत डॉ. मोक्षराज आदि ने महर्षि दयानन्द के व्यक्तित्व व कृतित्व पर अनेकानेक विचार एवं शोधपूर्ण पत्र प्रस्तुत किए। संगोष्ठी में महर्षि दयानन्द शोधपीठ के निदेशक प्रो. प्रवीण माथुर द्वारा प्रोजैक्टर के माध्यम से प्रस्तावित महर्षि दयानन्द वेद उद्यान (वैदिक पार्क) पर आधारित लघु चलचित्र प्रस्तुत किया।
महर्षि दयानन्द शोधपीठ द्वारा दि. 10.02.2018 को विश्वविद्यालय परिसर में स्वामी दयानन्द सरस्वती की 194वीं जयंती मनाई। जिसमें कार्यक्रम की विधिवत् शुरुआत हवन एवं भजन के साथ हुई। कार्यक्रम में स्वामी विष्वंग जी, गुरुकुल के आचार्यगण एवं अन्य संन्यासीगण, वानप्रस्थीगण, ब्रह्मचारीगण, ऋषि उद्यान, अजमेर पधारे। स्वामी विष्वंग ने महर्षि दयानन्द के जीवन चरित्र व उनके द्वारा समाज सुधार, नारी जाति का उद्धार, शिक्षा में स्वामी जी का योगदान व भारतीय सभ्यता संस्कृति का सही व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि स्वामी दयानन्द ने समाज में प्रचलित बाह्य आडम्बरों का विरोध किया व समाज को सही दिशा दी। आज भी स्वामी जी के सिद्धांत व विचार प्रासंगिक हैं। सबसे ज्यादा जरूरत समाज को सही दिशा देने की है। सबसे ज्यादा जरूरत समाज में नैतिकता की है, जिसके लिए स्वामी जी ने भरपूर प्रयास किए। आजादी में स्वामी जी के योगदान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी में भी स्वामी जी का अहम् योगदान रहा तथा ‘स्वराज‘ शब्द सबसे पहले उन्होंने ही दिया। स्वामी विष्वंग जी ने महर्षि दयानन्द शोधपीठ के निदेशक प्रो. माथुर से कहा कि शोधपीठ के अन्तर्गत विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं को स्वामी जी द्वारा किए गए कार्यों से अवगत करवाया जाए ताकि समाज में नैतिकता बनी रहे और देश के युवा सही दिशा में कार्य कर सकें। इस बारे में उन्होंने एक परीक्षा व पुरस्कार देने का निवेदन भी किया जिसको प्रो. माथुर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। ऋषि उद्यान से पधारे श्री वासुदेव जी ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर शोधपीठ के निदेशक प्रोफेसर प्रवीण माथुर ने शोधपीठ में होने वाली गतिविधियों की पूर्ण व विस्तृत चर्चा करते हुए बताया कि स्वामी जी का पूर्ण जीवन ही एक शोध का विषय है। उनके व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वे एक ऐसे तपस्वी, त्यागी, समाज सुधारक व दूरद्रष्टा थे जिनके प्रयास से समाज में कुरीतियों का नाश व सत्य का उद्घोष हुआ। उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक था और उनका हर विचार आज वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित भी हो चुका है। हवन यज्ञ व मंत्रोचारण पर आज भी कई भारतीय प्राद्यौगिकी संस्थानों में शोध हो चुके व हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के उच्च श्रेणी के शोध महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय की महर्षि दयानन्द शोधपीठ में करवाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
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